Thursday, November 5, 2009

अच्छे-बुरे में फर्क पहचानें: हर सभ्यता और सम्मान में "चाटुकारिता" नहीं होती

आज मैं एक ऐसे विषय पर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहा हूँ जिस विषय ने अक्सर हम सभी को कभी न कभी ज़रूर परेशान किया होगा | चलिए सबसे पहले मैं अपने मन में उठ रहे कुछ अनसुलझे सवालों के बारे में बताऊँ | मेरे मन में सवाल ये है कि आखिर क्या हो गया है हमारी सोच को? आखिर किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज? क्या हम बुराइयों और कुरीतियों से इतने घिर गए हैं कि हमारी मानसिकता भी बदलती जा रही है | क्या हम अच्छे बुरे में फर्क करना भूल गए हैं | या फिर हमारी आँखों ने बुराइयाँ इतनी देख ली हैं कि इन्हें अच्छाई दिखती ही नहीं? ये सारे सवाल मेरे ख़याल से काफी बड़े हैं और आज की सामाजिक परिस्तिथि में बिलकुल सटीक बैठते हैं |

कार्यक्षेत्र में बढ़ते दबाव और प्रतियोगिता ने लोगों को आज इतना परेशान और व्यस्त कर दिया है कि हमे मनोरंजन का मौका भी नहीं मिलता | कार्यक्षेत्र कोई भी हो काम का दबाव इतना ज्यादा है कि चाह कर भी हम खुद के लिए बहुत वक़्त नहीं निकाल पाते | लेकिन क्या कभी हमने इस बात पर गौर किया है कि इस दबाव और टेंशन ने लोगों की सोच में कितना बदलाव ला दिया है | हम अब लोगों में अच्छाइयां कम और बुराइयाँ ज्यादा देखने लगे हैं | हालाँकि ये सच भी है कि कुछ लोग बढती प्रतियोगिता के कारण तरक्की के लिए गलत तरीके या बोले तो शार्टकट का इस्तेमाल करते हैं | इसमें कई तरह के तरीके हो सकते हैं | लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम हर दूसरे शख्स को अपना विरोधी, अपना दुश्मन समझ लें |

बुराइयां हमारे दिमाग पर इस कदर हावी हो चुकी है कि हम किसी शख्स की हर एक आदत को ग़लत ठहराने की कोशिश करते हैं | इसका कुछ उदहारण मैं आपके समक्ष पेश करना चाहूँगा | मान लीजिये कोई शख्स सबके साथ अच्छे से पेश आ रहा है तो उसे ये कहा जाता है कि ये तो ज़रूरत से ज्यादा मीठा बनने की कोशिश कर रहा है, ये तो भई मीठा ज़हर है | अगर कोई शख्स महिलाओं या लड़कियों के साथ सभ्यता से पेश आये तो फिर तो हद हो जाती है | उसे ये कहा जाता है कि ये लड़कियों की नज़र में हीरो बनने की कोशिश कर रहा है | अगर आप विनम्रता के साथ लोगों की मदद करते हैं आप के आचरण के बनावटी होने का आरोप लगेगा | कहा ये जायेगा कि ये तो लोगों की मदद का दिखावा है | इस तरह के तमाम आरोपों से लोगों को पुरष्कृत करने की हमें आदत पड़ चुकी है |

हम सब इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि इस दौर में प्रतियोगिता काफी बढ़ गयी है | आज के समय में एक बड़ा और कड़वा सच है कि जान-पहचान आपके करियर को आगे बढाने में काफी मदद करती है | लेकिन इस एक 'प्रतियोगिता' शब्द ने हमारी सोच में बहुत बड़ा बदलाव लाने का काम किया है | लोग तरक्की के लिए कुछ भी करें लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हर बात को इसी से जोड़कर देखें | हालाँकि इसमें किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते, क्योंकि आज माहौल ऐसा बन चूका है कि सभ्यता, संस्कार और शालीनता जैसी बातें लोगों को फालतू, बेकार, निरर्थक और तर्कहीन लगती हैं | अगर आपको ये संस्कार मिले हैं कि अपने से बड़ों की इज्ज़त करो, अपने सीनिअर्स का सम्मान करो या उनसे तमीज और तहजीब से पेश आओ तो ज़ाहिर सी बात है आप वैसा हीं करेंगे | लेकिन इस बात से आप सावधान रहें कि अगर आप वाकई लोगों का सम्मान करते हैं तो लोगों की नज़र में ये "चापलूसी, चाटुकारिता" है | आप पर ये आरोप भी हम लगा सकते हैं कि आप अपने बॉस को खुश करने के लिए उनका अभिवादन करते हैं | आप पर अपनी तरक्की और फायदे के लिए बॉस की "चमचागिरी" करने का आरोप भी लगाया जा सकता है | ये हमारी सोच हो गयी है और दुनिया को देखने का यही हमारा नजरिया हो गया है |

मैं आखिर में फिर वही सवाल दोहराना चाहता हूँ कि हम हर बात में कमियां निकालने की आदत कब छोडेंगे? कब हम अच्छे-बुरे का फर्क समझ सकेंगे | हमें समझना होगा कि हर शालीनता या सभ्यता के पीछे चापलूसी या चाटुकारिता नहीं होती | मुझे लगता है कि अब हमे अच्छाइयों को देखने की कोशिश करनी होगी | दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं जिसमें कुछ कमियां न हों | लेकिन इसका मतलब ये थोड़े ही न है कि हम सबको एक ही तराजू में तौलें या सबको मापने का एक ही पैमाना हो | कम से कम मैंने तो ये ज़रूर तय किया है कि मैं अच्छे-बुरे का फर्क समझूंगा | और मैं आपसे भी साथ पाने की उम्मीद करता हूँ |

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