Monday, February 15, 2010

ये "राहुल" क्या "कलावती" का राहुल है या कोई और ? "कलावती" का "राहुल" ऐसा तो नहीं था |




खूब चर्चा हुई, जमकर शाबाशी दी गयी | मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़े गए | हो भी क्यों न ? कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी तमाम विरोधों के बावजूद मुंबई आये और उन्हें एक भी काला झंडा नहीं दिखा | शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया था कि कांग्रेसी युवराज का स्वागत मुंबई में काला झंडा दिखा कर किया जाये | बस फिर क्या था ? शिवसैनिकों ने राहुल के विरोध प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर दी | गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए मुंबई पुलिस ने शहर को छावनी में तब्दील कर दिया | शिवसैनिक गिरफ्तार किये गए, नज़रबंद किये गए | जहाँ-जहाँ राहुल को जाना था, वहां धारा 144 लगा दी गयी |

आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने खुद राहुल के दौरे की तैयारी पर मोर्चा संभाल रखा था | महाराष्ट्र के पुलिस कमिश्नर खुद सड़कों पर उतरे और क़ानून व्यवस्था का जायजा लिया | ये सब तो उन्हें करना ही था, ये दौरा किसी आम उत्तर भारतीय का तो था नहीं ? ये यात्रा थी एक "युवराज" की | ये यात्रा थी गाँधी-नेहरु परिवार के चिराग की | राहुल आखिर कांग्रेस पार्टी की ओर से देश के प्रधानमंत्री पद के भावी उम्मीदवार हैं | ऐसे में उनकी सुरक्षा में भला कोताही कैसे हो सकती है |

राहुल जब मुंबई पहुंचे तो ऐसा लगा मानो महाराष्ट्र सरकार उन्हें काले झंडे ही नहीं काले रंग से ही दूर रखना चाहती है | राहुल की पूरी खातिरदारी हुयी | मुख्यमंत्री अशोक चौहान खुद "युवराज" के इंतज़ार में घंटो धूप में खड़े रहे | गृह राज्यमंत्री ने तो खातिरदारी की हद ही कर दी, उन्होंने अपने "युवराज" के "चप्पल" भी अपने हाथों में उठाये | ये है "राहुल बाबा" का जलवा |

राहुल बाबा काफी खुश हुए कि शिवसैनिकों की एक न चल सकी | लेकिन राहुल, आपको खुश होने की बजाय अब तो और ज्यादा सोचने की ज़रुरत है | अगर आपको आम लोगों की चिंता है तो ज़रा पूछिए महाराष्ट्र सरकार से कि तब मुख्यमंत्री खुद सामने क्यों नहीं जब आम उत्तर भारतीयों को राज ठाकरे और बाल ठाकरे के गुंडे मार रहे थे ? तब मुंबई पुलिस क्यों सो रही थी जब हिंदीभाषियों को वहां से भागने पर मजबूर किया जा रहा था ? कई लोग इस फसाद कि भेंट चढ़ गए, कईयों का घर उजड़ गया | पर उस वक़्त सरकार और मुंबई पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी थी | "राहुल बाबा" खुद तो "उड़न खटोले" से आते हैं और कड़ी सुरक्षा के बीच चलते हैं | सड़क पर उनका काफिला एक "अभेद्य दुर्ग" कि तरह होता है | लेकिन बेचारा आम इंसान जो रोज़ रेहड़ी लगाकर मुश्किल से 50 रुपये कमाता है, वो भला किससे सुरक्षा मांगे ?

मुझे याद है कि वो भी तो राहुल बाबा ही थे जो महाराष्ट्र गए थे और "कलावती" से मिले | उस "कलावती" से जो मुश्किलों का सामना करते हुए अपना और परिवार का पेट भर रही है | "कलावती" का दुःख राहुल के दिल को इस कदर छू गया कि उन्होंने संसद में इसका वृत्तांत सुनाया | पूरे देश ने "कलावती" को जाना | युवराज ने कलावती का ज़िक्र ऐसे किया मानो वो इस देश की गरीबी का जीता जागता उदहारण है | देश ने ये भी देखा कि कांग्रेस का युवराज गरीबों की कितनी चिंता करता है |

सवाल ये उठता है कि वो राहुल तो "कलावती" का राहुल था, फिर इस बार मुंबई दौरे पर आया ये कौन सा राहुल है ? कम से कम ये "कलावती" का "राहुल" तो नहीं हो सकता | वो राहुल तो गरीबों की सोचता था, उनकी बातें करता था | वो राहुल संवेदनशील था, लोगों का दुःख-दर्द समझता था | लेकिन ये "राहुल बाबा" तो "उड़नखटोले" पर आते हैं, खुद के लिए की गयी सुरक्षा व्यवस्था पर इतराते हैं और चले जाते हैं | अब अगर कोई ये कहे कि ये वही राहुल है जो "कलावती" का है तो "राहुल बाबा" आखिर ये चुप्पी क्यों ? आपको तो पूछना चाहिए महाराष्ट्र सरकार से, सवाल उठाने चाहिए मुंबई पुलिस पर कि 'जब पूरी की पूरी शिवसेना मिलकर भी आपको एक काला झंडा तक नहीं दिखा सकी, वहां आम उत्तर भारतीयों को कैसे पीटा गया और मार डाला गया' ? राहुल बाबा को तो सवाल ये भी उठाने चाहिए कि क्या महाराष्ट्र सरकार अब भी इसकी गारंटी देगी कि वहां किसी भी उत्तर भारतीय के साथ बुरा बर्ताव नहीं होगा, उनके साथ मारपीट नहीं होगी ? क्या इसकी गारंटी है कि अब वहां बाल ठाकरे या राज ठाकरे के गुंडों की नहीं चलेगी ?

अब जबकि शाहरुख़ खान की फिल्म "माय नेम इज खान" भी रिलीज़ हो गयी है | फिल्म का शिवसेना जमकर विरोध कर रही है | फिर आम लोगों की फ़िक्र करने का दावा करने वाले राहुल चुप क्यों हैं ? हालाँकि महाराष्ट्र सरकार विरोध को दबाने की कोशिश कर रही है लेकिन वो सफल नहीं हो पा रही | ऐसे में "राहुल बाबा" की चुप्पी ठीक नहीं लगती | उन्हें तो खुल कर सामने आना चाहिए और महाराष्ट्र सरकार पर उन्हें सवाल उठाने चाहिए | और मुझे लगता है कि राहुल बाबा अगर अपनी पार्टी की महाराष्ट्र सरकार से ऐसे सवाल नहीं उठा सकते तो मतलब यही निकलता है कि उनके भी बाकी राजनेताओं की तरह कई चेहरे हैं | एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या राहुल भी राजनीति के इस गंदे खेल में एक खिलाडी के तौर पर शामिल हो चुके हैं ?