Tuesday, November 10, 2009

ये मैं क्या देख रहा हूँ : कोई बताये तो ज़रा, ये "राजनीति" है या "गुंडागर्दी" ?

महाराष्ट्र विधानसभा में ९ नवम्बर २००९ की तारीख में जो कुछ हुआ, उसके बारे में मेरा कुछ कहना या लिखना शायद मायने नहीं रखता | क्योंकि इस बारे में अभी आगे बहुत कुछ लिखा और कहा जायेगा | राजनीति के अलावा दूसरे क्षेत्रों के भी एक से बढ़कर एक दिग्गज महाराष्ट्र विधानसभा के इस शानदार खेल(मारपीट) का बखान करेंगे | अपने ज्ञान का भंडार खोल तमाम धुरंधर राज ठाकरे, उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे) और पार्टी विधायकों का चरित्र चित्रण करेंगे | दरअसल ये सब शुरू भी हो गया है और आगे ये सब कुछ और होना है तो सोचा क्यों न मैं भी बहती गंगा में डुबकी लगा लूँ |

अबू आज़मी के हिंदी में शपथ लेने पर मनसे के विधायकों का आज़मी पर हाथ चलाना और मारपीट करना न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि इसकी जितनी भी कड़े शब्दों में आलोचना की जाये कम है | हालाँकि राज ठाकरे के बारे में क्या कहूँ | उन्होंने जो कुछ अब तक किया है या अब जो अपने विधायकों से कराया है वो भी कोई अचानक नहीं हुआ | इसकी सूचना(धमकी) उन्होंने बड़े ही शान से पहले ही दे दी थी | फिर भी विधानसभा में ये सब कुछ हुआ, सोचनीय है | खैर, सिर्फ राज ठाकरे को ही दोष देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि ये भी गौर करना होगा की आखिर राज ठाकरे हैं कौन? तो ये सब जानते हैं की जनाब राज ठाकरे जी शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे के भतीजे हैं | तो भला बाला साहब ठाकरे और उनकी पार्टी शिवसेना ने पिछले कुछ दशकों में जो कुछ किया है वही तो राज ठाकरे को विरासत में मिला है | दोनों के अंदाज़ जुदा हो सकते हैं पर दोनों जो कर रहे हैं उसका अंजाम एक ही होगा और वो है, समाज में बिखराव और फूट |

मनसे विधायकों ने जो किया है उससे ऐसा लगता है मानो राज ठाकरे और उनकी पार्टी मनसे अपने "मन"- से ही महाराष्ट्र में सब कुछ करना चाहते हैं | शिवसेना, मनसे तो क्षेत्रीय दल हैं | उनकी राजनीति क्षेत्रवाद पर ही चलती है | हैरत तो तब होती है जब बड़े और राष्ट्रीय दल होने के गुरूर में डूबी पार्टियाँ इस मामले पर चुप्पी साध लेती हैं या फिर बनावती विरोध दर्शाती हैं | या अगर वो ये दावा करती हैं कि उनका विरोध सच्चा है तो क्या ये मान लिया जाये कि 'मनसे' ने बाकी दलों की धार कुंद कर दी है ? क्या सारे राजनेता और राजनीतिक दल मिलकर भी राज ठाकरे और उनकी पार्टी को रोक नहीं पा रहे ? क्या देश की गद्दी पर बैठी पार्टी किसी एक राज्य, एक क्षेत्र, एक धर्म या जाति के वोट से ही सत्ता तक पहुंची है ? क्या विपक्ष में बैठे दलों ने भी किसी ख़ास इलाके के लोगों से ही वोट लिए हैं ? अगर इसका जवाब "ना" है तो भला ये चुप्पी क्यों ? हालाँकि आम लोगों के दिलों में ये बात तो पहले ही बैठी थी कि सभी पार्टियाँ और उनके नेता एक ही जैसे हैं, लेकिन क्या अब यकीनन मान लिया जाये कि ये सच है ? ये तमाम सवाल आम लोगों के जेहन में उठते रहे हैं |

हिंदी, उर्दू, पंजाबी, मराठी, गुजराती या फिर किसी और भाषा को आपस में बांटने की बात तो सोचनी भी नहीं चाहिए | लेकिन ऐसे मौके पर मुझे हिंदी का सम्मान करने का और हिंदी भाषी क्षेत्र के नेता होने का दावा करने वालों पर हैरत हो रही है | कथित तौर पर कद्दावर कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, मायावती, नीतिश कुमार, रामविलास पासवान जैसे नेता कहाँ हैं ? इनके जैसे देश में और भी हिंदी भाषियों के नेता हैं | ये आखिर हाथ पर हाथ धरे क्यों तमाशबीन बने हुए हैं ? जब से राज ठाकरे ने हिंदी भाषा और हिंदी भाषियों के खिलाफ मुहीम छेड़ी है, लगातार उनके गुंडे(कार्यकर्ता) समाज को तोड़ने में लगे हैं |

अब जबकि लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले सदन में ही खुल्लम-खुल्ला इस तरह की घटना होती है तो देश को शर्मसार होना पड़ता है | ये सिर्फ समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी पर हमले का मामला नहीं है बल्कि ये हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी का अपमान है | जब संविधान में सभी को जाति, धर्म, भाषा की स्वंत्रता है तो भला संविधान की इस व्यवस्था पर चोट क्यों ? अब सवाल ये उठता है कि क्या मनसे के चार विधायकों को चार साल के लिए निलंबित कर देने भर से ये मामला ख़त्म हो जायेगा ? कदापि नहीं | ज़रुरत है इन विधायकों और राज ठाकरे को ऐसी सख्त सज़ा देने की जिसके बाद कोई और 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना' जैसी पार्टी ना पनप सके या कोई और 'राज ठाकरे' समाज को तोड़ने या उसमे ज़हर घोलने की जुर्रत ना कर सके |

Thursday, November 5, 2009

अच्छे-बुरे में फर्क पहचानें: हर सभ्यता और सम्मान में "चाटुकारिता" नहीं होती

आज मैं एक ऐसे विषय पर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहा हूँ जिस विषय ने अक्सर हम सभी को कभी न कभी ज़रूर परेशान किया होगा | चलिए सबसे पहले मैं अपने मन में उठ रहे कुछ अनसुलझे सवालों के बारे में बताऊँ | मेरे मन में सवाल ये है कि आखिर क्या हो गया है हमारी सोच को? आखिर किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज? क्या हम बुराइयों और कुरीतियों से इतने घिर गए हैं कि हमारी मानसिकता भी बदलती जा रही है | क्या हम अच्छे बुरे में फर्क करना भूल गए हैं | या फिर हमारी आँखों ने बुराइयाँ इतनी देख ली हैं कि इन्हें अच्छाई दिखती ही नहीं? ये सारे सवाल मेरे ख़याल से काफी बड़े हैं और आज की सामाजिक परिस्तिथि में बिलकुल सटीक बैठते हैं |

कार्यक्षेत्र में बढ़ते दबाव और प्रतियोगिता ने लोगों को आज इतना परेशान और व्यस्त कर दिया है कि हमे मनोरंजन का मौका भी नहीं मिलता | कार्यक्षेत्र कोई भी हो काम का दबाव इतना ज्यादा है कि चाह कर भी हम खुद के लिए बहुत वक़्त नहीं निकाल पाते | लेकिन क्या कभी हमने इस बात पर गौर किया है कि इस दबाव और टेंशन ने लोगों की सोच में कितना बदलाव ला दिया है | हम अब लोगों में अच्छाइयां कम और बुराइयाँ ज्यादा देखने लगे हैं | हालाँकि ये सच भी है कि कुछ लोग बढती प्रतियोगिता के कारण तरक्की के लिए गलत तरीके या बोले तो शार्टकट का इस्तेमाल करते हैं | इसमें कई तरह के तरीके हो सकते हैं | लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम हर दूसरे शख्स को अपना विरोधी, अपना दुश्मन समझ लें |

बुराइयां हमारे दिमाग पर इस कदर हावी हो चुकी है कि हम किसी शख्स की हर एक आदत को ग़लत ठहराने की कोशिश करते हैं | इसका कुछ उदहारण मैं आपके समक्ष पेश करना चाहूँगा | मान लीजिये कोई शख्स सबके साथ अच्छे से पेश आ रहा है तो उसे ये कहा जाता है कि ये तो ज़रूरत से ज्यादा मीठा बनने की कोशिश कर रहा है, ये तो भई मीठा ज़हर है | अगर कोई शख्स महिलाओं या लड़कियों के साथ सभ्यता से पेश आये तो फिर तो हद हो जाती है | उसे ये कहा जाता है कि ये लड़कियों की नज़र में हीरो बनने की कोशिश कर रहा है | अगर आप विनम्रता के साथ लोगों की मदद करते हैं आप के आचरण के बनावटी होने का आरोप लगेगा | कहा ये जायेगा कि ये तो लोगों की मदद का दिखावा है | इस तरह के तमाम आरोपों से लोगों को पुरष्कृत करने की हमें आदत पड़ चुकी है |

हम सब इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि इस दौर में प्रतियोगिता काफी बढ़ गयी है | आज के समय में एक बड़ा और कड़वा सच है कि जान-पहचान आपके करियर को आगे बढाने में काफी मदद करती है | लेकिन इस एक 'प्रतियोगिता' शब्द ने हमारी सोच में बहुत बड़ा बदलाव लाने का काम किया है | लोग तरक्की के लिए कुछ भी करें लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हर बात को इसी से जोड़कर देखें | हालाँकि इसमें किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते, क्योंकि आज माहौल ऐसा बन चूका है कि सभ्यता, संस्कार और शालीनता जैसी बातें लोगों को फालतू, बेकार, निरर्थक और तर्कहीन लगती हैं | अगर आपको ये संस्कार मिले हैं कि अपने से बड़ों की इज्ज़त करो, अपने सीनिअर्स का सम्मान करो या उनसे तमीज और तहजीब से पेश आओ तो ज़ाहिर सी बात है आप वैसा हीं करेंगे | लेकिन इस बात से आप सावधान रहें कि अगर आप वाकई लोगों का सम्मान करते हैं तो लोगों की नज़र में ये "चापलूसी, चाटुकारिता" है | आप पर ये आरोप भी हम लगा सकते हैं कि आप अपने बॉस को खुश करने के लिए उनका अभिवादन करते हैं | आप पर अपनी तरक्की और फायदे के लिए बॉस की "चमचागिरी" करने का आरोप भी लगाया जा सकता है | ये हमारी सोच हो गयी है और दुनिया को देखने का यही हमारा नजरिया हो गया है |

मैं आखिर में फिर वही सवाल दोहराना चाहता हूँ कि हम हर बात में कमियां निकालने की आदत कब छोडेंगे? कब हम अच्छे-बुरे का फर्क समझ सकेंगे | हमें समझना होगा कि हर शालीनता या सभ्यता के पीछे चापलूसी या चाटुकारिता नहीं होती | मुझे लगता है कि अब हमे अच्छाइयों को देखने की कोशिश करनी होगी | दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं जिसमें कुछ कमियां न हों | लेकिन इसका मतलब ये थोड़े ही न है कि हम सबको एक ही तराजू में तौलें या सबको मापने का एक ही पैमाना हो | कम से कम मैंने तो ये ज़रूर तय किया है कि मैं अच्छे-बुरे का फर्क समझूंगा | और मैं आपसे भी साथ पाने की उम्मीद करता हूँ |

Sunday, July 26, 2009

वक़्त और हालात बदल गए हैं,नजरिया भी बदलो: षड्यंत्रकारियों से सावधान


एक बात जो हमेशा से कही जाती रही है कि "आपका जैसा नजरिया होता है,जैसी आपकी सोच होती है ,दुनिया आपको वैसी ही दिखती है| मतलब ये कि आप अच्छे हैं तो दुनिया आपको अच्छी दिखेगी और आप बुरे हैं तो दुनिया आपको बुरी दिखेगी| लेकिन मैं इस तर्क से इत्तेफाक नहीं रखता| मुझे लगता है कि इस सोच को,इस तर्क को बदलने की ज़रूरत है| समस्या ये है कि आपको बुराई दिखती है,आप देखते हैं कि बुरे लोग अपनी चाल में कामयाब हो रहे हैं,लेकिन आप खुल कर कुछ नहीं बोलते| दरअसल जब कोई इंसान कुछ बोलना चाहता है तो कुछ ऐसे लोग जो नियम-कानून और सिद्धांतों की दुहाई देते हैं,वो समझाने की कोशिश करते हैं कि दुनिया को अच्छी नज़र से देखो| अब जो इंसान अपनी बात कह रहा होता है वो खामोश हो जाता है| हालाँकि मैं मानता हूँ कि बुराई का अंत तो तय है और ये भी सच है कि दुनिया में अच्छाई आज भी विद्यमान है और शायद बुराई से ज्यादा ताक़तवर भी है| लेकिन जीवन के हर मोड़ पर बुराई ने लोगों को गहरी चोट दी है,ये एक बड़ा सच है|

समस्या तब खड़ी होती है जब एक अच्छाई को दस बुराइयों से अकेले लड़ना पड़ता है| गौर करने वाली बात ये है कि जो दूसरों के लिए परेशानी खड़ी करने का काम करते है,वो कई तरह से आपको परेशान कर सकते हैं| ऐसे लोगों की कोशिश होती है कि किसी भी तरह से दूसरों को मुसीबत में डालना है| मैंने कुछ हद तक ये भी महसूस किया है कि ऐसे लोग अपनी शुरूआती चालों में कामयाब भी होते हैं| इसकी वजह भी है| दरअसल एक आम इंसान ज़िन्दगी की दौड़ खामोशी के साथ सीधे रास्ते पर दौड़ रहा होता है,जबकि एक बुरा इंसान हरेक कदम सोच कर और सोची समझी रणनीति के तहत बढ़ाता है| ज़ाहिर तौर पर ऐसे लोग थोडी सफलता शुरू में ज़रूर हासिल करते हैं| पूरा मामला ये होता है कि एक कुटिल इंसान कभी आपको खुश नहीं देख सकता| अगर आप खुश हैं तो ये उसके लिए तकलीफ की बात हो जायेगी| अगर आपको स्कूल या कॉलेज में सफलता मिलती है तो ये बात उसे नहीं पचेगी| अगर आप नौकरी करते हैं और ऑफिस में आपके रिश्ते सभी से अच्छे हैं तो एक खुराफाती इंसान परेशान हो जायेगा| और तो और, अगर कुछ गिने-चुने लोगों से आपके रिश्ते बहुत अच्छे हैं तो ये बात एक बुरे इंसान की आँखों में कांटे की तरह चुभेगी| बस यहीं से शुरू हो जाती है उनकी राजनीति| हालाँकि इसे राजनीति कहना शायद ठीक भी नहीं होगा| ऐसे ही कुछ लोगों ने राजनीति शब्द को गन्दा बना दिया है| मुझे लगता है कि ये एक घटिया मानसिकता है जो ऐसे लोगों को इस तरह कि गिरी हुई हरकत करने के लिए प्रेरित करती है| खैर,ये राजनीति हो या कुटिलता, लेकिन है बहुत ही बुरी आदत|

ऐसे इंसान सबसे पहले आपके ख़ास और करीबी रिश्ते पर चोट करते हैं| आपको,अपने करीबी मित्रों से अलग करने के लिए एक बुरा इंसान किसी भी हद तक जा सकता है| चौंकाने वाली बात ये है कि इस तरह के इंसान काफी हद तक गंभीर और ज्ञान की बातें करते हैं| ऐसा लगता है कि दुनिया में इनसे ज्यादा ज्ञानी इंसान तो हो ही नहीं सकता| और उसी पल वो वो आपके खिलाफ अपनी चाल को अंजाम देता है| आपको अगर ऐसी परिस्तिथि का सामना करना पड़े तो बहुत तकलीफ होती है,क्योंकि तब आपको काफी सोच-समझकर प्रतिक्रिया देनी होती है| अब यहाँ पर उन लोगों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है जो आपके ख़ास और करीबी हैं| जब आप पर चोट होती है और आपके रिश्तों को तोड़ने की कोशिश होती है तो ये बेहद ज़रूरी है कि आपस में विश्वास बनाए रखें| आपके विश्वास कि डोर जिस पल भी कमज़ोर पड़ी,समझ लीजिये कि बुराई को हावी होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा| मैं तो यही कहूँगा कि एक बार बुराई का को परास्त कर दें,उसके बाद आपस की ग़लतफ़हमी ख़त्म कर लें| ये सारी बातें मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि कभी-कभी हम जिन चीज़ों को छोटी बात मान कर नज़र अंदाज़ कर देते हैं,वो ज़िन्दगी में भूचाल भी ला देती हैं|

एक बात और मैं विशेष तौर पर ज़िक्र करना चाहता हूँ की इंसान जब मुश्किलों में घिरता है,जब इंसान को चोट लगती है तो वो अपने सबसे ख़ास और करीबी शख्स का साथ चाहता है| इसलिए मेरी सबसे गुजारिश है की कभी भी ज़रूरत के वक़्त अपनों को अकेला न छोडें और खुद भी परेशानी के वक़्त अपनों का साथ ज़रूर लें| लेकिन कभी-कभी बुरे इंसान की लगाई हुई आग और उसकी चाल इतनी भीषण होती है कि आपके अपने ही साथ छोड़ जाते हैं| आपका करीबी ही आपके खिलाफ हो जाता है| दर्द,असहनीय तब हो जाता है जब आपका सबसे करीबी शख्स इस चाल को समझ नहीं पाता और वो खुद न सिर्फ आपके खिलाफ होता है,बल्कि आपका करीबी ही आप पर आरोपों से वार कर रहा होता है| ऐसे में समस्या ये होती है कि आप गैरों से,दुश्मनों से तो लड़ सकते हैं पर अपनों का मुकाबला कैसे करेंगे ? ये एक बड़ा सवाल है और जीवन के किसी न किसी मोड़ पर आपके सामने ज़रूर खड़ा होता है| बुराई से लड़ने के लिए ही ज़रूरी है कि अपनों में विश्वास बना रहे और किसी भी परिस्तिथि में विश्वास कि डोर न टूटे|


आखिर में मैं एक विनम्र निवेदन करना चाहूँगा,कि कृपया ये कहना बंद करें कि "बुरी नज़र से ही बुराई दिखती है और अच्छी नज़र से देखोगे तो सिर्फ अच्छाई ही दिखेगी"| मुझे ऐसा लगता है कि एक अच्छा इंसान बुराइयों को ज्यादा देख सकता है,क्योंकि उसे परेशान करने के लिए ,चोट पहुंचाने के लिए आस-पास कई बुरे लोग एक साथ भिडे होते हैं| हालाँकि शुरूआती सफलता तो बुराई को मिल सकती है,लेकिन आखिर में जीत अच्छाई और अच्छे लोगों को ही नसीब होगी| ऐसा मेरा विश्वास है| आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि आखिर ये सब मैं किसलिए बता रहा हूँ| दरअसल मैं सिर्फ ये बताना चाहता हूँ कि इत्तफाक से इस ख़ास किस्म के दो-चार महापुरुष या दो-चार देवियाँ हर स्कूल,कॉलेज,या फिर ऑफिस में मौजूद होते हैं| ऐसे लोग समाज कि सबसे बड़ी बीमारी हैं,और इस बीमारी का इलाज बेहद ज़रूरी है| आइये मिलकर आगे बढ़ें और इस समाज के इस रोग को जड़ से उखाड़ फेंके|

Tuesday, June 23, 2009

hi main aa gaya doston.ab tum bhi ready ho jao.kyunki muhabbat aur jung me sab jayaz hota hai.main koi riyayat nahi dunga.